उनकी दुनिया अलग है… शब्दों से परे, बस उनकी आँखों में प्रतीकात्मक संकेत और भाव हैं। हम शायद इस भाषा को आसानी से न समझ पाएँ, लेकिन उनकी आँखों की चमक देखिए… उसमें हमें भविष्य के प्रति अटूट विश्वास दिखाई देता है। मानो वे बिना बोले ही पूरी दुनिया को बता रहे हों, “हम अपूर्ण नहीं हैं, हम स्वयं निर्मित हैं! तुम बस अपने विश्वास का हाथ हमारी पीठ पर रखो और कहो कि लड़ो, फिर देखो हम कैसे इस दुनिया को तुम्हारे हाथों में सौंप देते हैं!”
यह मौन, फिर भी बेहद प्रभावशाली संवाद मिराज के स्वर्गीय आर. वी. भिड़े मूक-बधिर विद्यालय की चारदीवारी के भीतर गूंज रहा था। यह एक ऐतिहासिक बदलाव का अवसर था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और रोबोटिक्स की दुनिया के दरवाज़े उन बच्चों के लिए खुल रहे थे जिनके बारे में हम सोचते थे कि वे समाज की प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट जाएँगे।
इस स्वप्न-जैसे कार्य को सांगली के जिला कलेक्टर अशोक काकड़े ने साकार किया। उन्होंने न केवल “हमारा सांगली – सक्षम दिव्यांग, हमारा गौरव” के आदर्श वाक्य को अपनाया, बल्कि उसे अमल में भी लाया। पुणे के ‘वर्शिप अर्थ फाउंडेशन’ द्वारा उनकी इस अवधारणा को मिली प्रतिक्रिया इन बच्चों के भाग्य में एक सुनहरा सवेरा लेकर आई।
पिछले १५ दिनों से, रोज़ाना तीन घंटे, इस स्कूल की कक्षाएँ जीवंत हो उठी हैं। यहाँ के ७३ लड़के-लड़कियों के हाथों में पंख उग आए हैं जो भविष्य को आकार देंगे।
* जब उन्होंने 3-डी प्रिंटर का उपयोग करके गणपति बप्पा की मूर्ति बनाई, तो यह महज एक प्रयोग नहीं था, बल्कि उनकी छिपी रचनात्मकता का पहला उदाहरण था।
* जब उन्होंने सेंसर का उपयोग करके आग लगने या बिजली गुल होने की स्थिति में बजने वाला अलार्म बनाया, तो वे न केवल विज्ञान सीख रहे थे, बल्कि यह भी अनुभव कर रहे थे कि प्रौद्योगिकी किस प्रकार हमारी मित्र और रक्षक हो सकती है।
* जब उन्होंने चैट-जीपीटी में अपने विचारों को चित्रों में टाइप किया, तो उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं रही। तकनीक ने उन्हें एक नई ‘भाषा’, एक नई ‘आवाज़’ दी!
जिन बच्चों को अब तक सिर्फ़ सहानुभूति ही मिली थी, इस कार्यशाला ने उन्हें आत्मविश्वास और समान अवसर की शक्ति दी। उनके लिए STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) जैसे जटिल प्रतीत होने वाले क्षेत्रों के द्वार खुल गए।
यह सिर्फ़ एक कार्यशाला नहीं थी; यह एक बड़े बदलाव की नींव थी। जो सुन या बोल नहीं सकते, उनके लिए यह खुद को अभिव्यक्त करने, सीखने और इस डिजिटल दुनिया में गर्व से आगे बढ़ने का एक नया रास्ता है। इस ज्ञान और आत्मविश्वास से लैस ये बच्चे कल न सिर्फ़ आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेंगे।
क्योंकि वे अपूर्ण नहीं हैं, वे स्व-निर्मित हैं। और उनकी यात्रा अब सचमुच शुरू हो गई है!
संप्रदाय बीडकर
जिला सूचना अधिकारी, सांगली